उचित स्पेस की हकदार आध्यात्मिक पत्रकारिता
भारत में आध्यात्मिक पत्रकारिता एक उभरती हुई विधा है, लेकिन शायद कई लोग पत्रकारिता की विधा के रुप में इसका नाम पहली बार सुन रहे होंगे।
भारत जैसे अध्यात्म प्रधान देश में हालाँकि आध्यात्मिक पत्रकारिता एक पुरातन विधा है, जो किसी न किसी रुप में हर युग में विद्यमान रही है, लेकिन अकादमिक स्तर तथा मुख्यधारा की पत्रकारिता में इस पर चर्चा न के बराबर हुई है, अतः इस रुप में आध्यात्मिक पत्रकारिता एक नई अवधारणा है और यह एक उभरती हुई विधा है।
भारत की मुख्यधारा की पत्रकारिता पर यदि गौर करें, तो इसके उभरते स्वरुप के दिग्दर्शन स्पष्ट रुप से किए जा सकते हैं। हालांकि इसका स्वरुप अभी बहुत स्पष्ट न हो, लेकिन इसके उपस्थिति को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
प्रिंट मीडिया में देखें, तो समाचार पत्रों में नियमित रुप से आध्यात्मिक स्तम्भ प्रकाशित हो रहे हैं, लगभग हर अखबार में ये स्थान पाते हैं कुछ अपवादों को छोड़कर। इसी तरह अखबारों के साप्ताहिक परिशिष्ट देखें तो कुछ अपवादों को छोड़कर इसमें भी आध्यात्मिक सामग्री का नियमित प्रकाशन हो रहा है।
समाचार पत्रिकाओं में देखें तो अपनी सीमाओं में यहाँ कुछ पहल दिखती है, जबकि साहित्यिक पत्रिकाओं में अध्यात्म को लेकर बेहतरीन प्रयास देखे जा सकते हैं। अगर हम, टीवी चैनलों की बात करें, तो तीन दर्जन से अधिक भक्ति एवं आध्यात्मिक चैनल इस समय चल रहे हैं। इनकी लोकप्रियता को देखते हुए समाचार एवं मनोरंजन चैनल भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक कार्य़क्रमों को प्रस्तुत कर रहे हैं।
अगर हम, वेब माध्यम की बात करें, तो आध्यात्मिक सामग्री की यहाँ भरमार है। चाहे फेसबुक हो, ट्विटर हो, इंस्टाग्राम हो या यू-ट्यूब या ब्लॉग्ज, आप यहाँ आध्यात्मिक सामग्री का विस्फोट देख सकते हैं।
और अगर हम आध्यात्मिक पत्रकारिता की वास्तविक संवाहक को देखें, तो इसमें आध्यात्मिक पत्रिकाओं को ले सकते हैं, जो मुख्यधारा की पत्रकारिता में अध्यात्म को कवर करने के प्रयास से दशकों पूर्व से सक्रिय रही हैं तथा बिशुद्ध पारमार्थिक भाव एवं मिशनरी उत्साह के साथ कार्य कर रही हैं।
इन सबको मिलाकर जो पत्रकारिता का स्वरुप उभरता है, चाहे वो प्रिंट में अखबार, समाचार, साहित्यिक और आध्यात्मिक पत्रिकाओं के रुप में प्रकाशित हो रहा अध्यात्म हो या टीवी चैनल्ज और वेब माध्यम के माध्यम से प्रसारित हो रही आध्यात्मिक सामग्री, उसे आध्यात्मिक पत्रकारिता कह सकते हैं।
आध्यात्मिक पत्रकारिता के स्वरुप एवं अस्तित्व को लेकर विशेषज्ञों में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन इसकी उपस्थिति इतनी स्पष्ट है कि इसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। हालाँकि मीडिया घरानों में इसको लेकर वह गंभीरता नहीं दिखती, जिसकी यह हकदार है। अभी भी यह एक उपेक्षित विधा है, लेकिन पाठकों की माँग, इसके व्यवसायिक महत्व और युग की आवश्यकता को देखते हुए निसंकोच रुप में कह सकते हैं कि आध्यात्मिक पत्रकारिता का आगाज हो चुका है, आवश्यकता उसको उचित स्थान या स्पेस देने की है, जिसकी यह हकदार है।
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