सोमवार, 16 अगस्त 2021

आध्यात्मिक पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास यात्रा

 

     Growth and development of Spiritual Journalism

 


अध्यात्म प्रधान देश भारत में आध्यात्मिक पत्रकारिता उस रुप में न रही हो जैसी कि वह आज उपलब्ध है, लेकिन इसमें आध्यात्मिक अंतर्प्रवाह प्रारम्भ से ही देखा जा सकता है।

वेदों के मंत्रद्रष्टा ऋषियों ने जीवन के आध्यात्मिक सुत्र दिए, जो उपनिषद के गुरु-शिष्य संवाद के रुप में अपना चरमोत्कर्ष पाते हैं। इनका सार श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद के रुप में देखा जा सकता है।

षड्दर्शन में भारतीय अध्यात्म की दार्शनिक उड़ान क्रमिक रुप से न्याय-वेशैषिक से प्रारम्भ होकर साँख्य-योग से होते हुए मीमांसा-अद्वैत दर्शन में अपने चरम को पाती है। पौराणिक काल के नारद मुनि, जो तीनों लोकों की सूचनाएं रखते थे व लोकहित में जारी करते रहते थे, को आदि पत्रकार की संज्ञा दी जा सकती है। इनके संचार के परिणाम कितने ही लोगों के जीवन की रुपाँतरणकारी घटनाओं के रुप में लिपिवद्ध हैं, जैसे - ध्रुब, नचिकेता, पार्वती से लेकर भगत प्रह्लाद आदि।

रामायण काल में वानर यौद्धा अंगद, हनुमान के लंका नरेश रावण की सभा में संदेशवाहक दूतों की भूमिका में पत्रकारिता के उच्चस्तरीय मानक देखे जा सकते हैं। महाभारत के रणक्षेत्र कुरुक्षेत्र में संजय-धृष्टराष्ट्र के संवाद के रुप में युद्ध की बेहतरीन ऑडियो-विजुअल लाईव रिपोर्टिंग देखी जा सकती है।

बुद्ध भगवान का धर्मचक्र प्रवर्तन और इसके धर्म शरणं गच्छामि, बुद्धं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि के संदेश में आध्यात्मिक संचार के क्राँतिकारी प्रयोग देखे जा सकते हैं। आदि शंकराचार्यजी की सांस्कृतिक दिग्विजय यात्राएं एवं शास्त्रार्थ प्रकारान्तर में इसी की अगली कडियाँ रहीं, जो पूरे राष्ट्र को एक सांस्कृतिक सुत्र में बांधने के अभूतपूर्व प्रयास थे।

मध्यकाल (मुगल शासन के दौरान) में भक्ति आंदोलन के दौर में नानक, कबीर, सूर, तुलसी, मीरा, नामदेव, तुकाराम, चैतन्य महाप्रभु जैसे संतों, कवियों एवं भक्तों के सुरों में जीवंत आध्यात्मिक संचार को प्रवाहमान देखा जा सकता है, जो हताश-निराश लोकमानस के मध्य आशा, जाग्रति एवं भक्ति का मंत्र फूंकता है।

19वीं सदी में सांस्कृतिक पुनर्जागरण के दौर में स्वामी विवेकानन्द की विश्वव्यापी परिव्रज्या एवं भारतीय सनातन धर्म के संदेश में आध्यात्मिक संचार का दिगंतव्यापी उद्घोष होता देखा जा सकता है।

आश्चर्य नहीं कि आधुनिक पत्रकारिता भी इससे प्रभावित हुए बिना कैसे रह सकती थी। वस्तुतः स्वतंत्रता संग्राम के दौर में भारतीय पत्रकारिता अपनी आध्यात्मिक आभा के साथ दीप्त रही। इसके केन्द्र में आध्यात्मिक प्रवृत्ति सक्रिय थी। पत्रकारिता को एक मिशन की तरह अपनाने वाला आदर्शवादी जज्बा बिना आध्यात्मिक आस्था के संभव नहीं। एक आदर्शवादी पत्रकार धर्म का निर्वाह बिना आध्यात्मिक प्रेरणा के दुर्लभ है।

ब्रह्म समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, थियोसोफिकल सोसायटी जैसे आध्यात्मिक-धार्मिक आन्दोलनों का भारतीय पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण योगदान रहा।

 

19वीं सदी के भारत में आध्यात्मिक पत्रकारिता -            

उदन्त मार्तण्ड (1826) जो कि हिन्दी का पहला समाचार पत्र था, में धर्म सम्बन्धी सामग्री की प्रचुरता रहती थी। 1854 में प्रकाशित समाचार सुधावर्षण ने अपने समय के विवादित विषय - विधवा विवाह शास्त्रोक्त है या शास्त्र विरोधी पर लेखमाला ही प्रकाशित की थी। इसी प्रकार सार सुधानिधि में पं. सदानन्दन मिश्र समय-समय पर गौ हत्या के विरुद्ध आवाज उठाते रहे।

     वस्तुतः भारतेन्दु युग में धर्म, अध्यात्म सम्बन्धी लेखों का महत्वपूर्ण स्थान रहा। 1879 में भारतेन्दुजी द्वारा प्रकाशित हरिश्चन्द्र मेगजीन को साहित्यिक, दार्शनिक, व्यंग्य औऱ देशभक्ति लेखों के लिए पहचाना गया। रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रबुद्ध भारत (Prabudha Bharata) के नाम से 1896 से अंग्रेजी में मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ होता है। स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से शुरु इस पत्रिका में धर्म, अध्यात्म, दर्शनशास्त्र, विज्ञान एवं जनहित से संबंधित लेख प्रकाशित किए जाते हैं।


बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध की आध्यात्मिक पत्रकारिता -

     1914 से ही रामकृष्ण मठ की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पत्रिका द वेदान्त केसरी का प्रकाशन प्रारम्भ होता है, जो तब से अनवरत रामकृष्ण मठ चैन्नई से प्रकाशित हो रही है, यह अंग्रेजी में प्रकाशित होती है। इससे पूर्व श्रीअरविंद कर्मयोगिन और वंदेमातरम् जैसी क्राँतिकारी पत्रिकाओं के माध्यम से राष्ट्रीय जागरण की अलख जगा चुके थे।

     गाँधी युगीन भारतीय पत्रकारिता भी अध्यात्म भाव से अनुप्राणित रही। पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला व उनके सहयोगी द्वारा प्रकाशित मतवाला (1923) स्वामी विवेकान्द के विचारों से प्रभावित रहा। इसमें उनके हिंदु धर्म एवं आध्यात्मिक वर्चस्व सम्बन्धी ओजस्वी विचारों को प्रमुखतया स्थान दिया जाता था।

योगदा सतसंग, योगदा सतसंग सोसायटी ऑफ इंडिया (राँची) की अंग्रेजी में प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका है, जिसका प्रकाशन योगानन्द परमहंस ने सन 1925 में शुरु किया था। पत्रिका में तन, मन और आत्मा के उपचार को सुझाते पुरातन ज्ञान एवं आधुनिक विचारों का संगम, समन्वय देखा जा सकता है।

     अगस्त 1926 से प्रकाशित मासिक कल्याण पत्रिका का हिन्दी की आध्यात्मिक पत्रकारिता में ऐतिहासिक स्थान रहा है। उल्लेखनीय रहा कि, गीता प्रेस की स्थापना (29 अप्रैल, 1923) आध्यात्मिक पत्रकारिता के क्षेत्र की एक ऐतिहासिक घटना रही। सस्ते मूल्य पर प्रामाणिक धार्मिक साहित्य विशेषतः गीता को सुलभ कराने का जो महत्वपूर्ण कार्य गीताप्रेस ने किया है, वह प्रशंसनीय है। गीता और रामायण की लगभग चार करोड़ प्रतियाँ अब तक गीता प्रेस से निकल चुकी हैं। इसके अतिरिक्त अन्य औपनिषदिक, पौराणिक और धार्मिक साहित्य का गीताप्रेस द्वारा प्रकाशन हुआ है। कल्याण की ग्राहक संख्या डेढ़-दो लाख से अधिक होगी, जिसका विशेषाँक तो पाँच लाख से ऊपर की संख्या में छपता है।

     आध्यात्मिक पत्रकारिता के क्षेत्र में अखण्ड ज्योति का प्रकाशन भी एक ऐतिहासिक घटना रही। गायत्री-यज्ञों के प्रणेता पं. श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा अध्यात्मवाद के प्रचार की दृष्टि से 1940 से मथुरा से अखण्ड ज्योति मासिक का नियमित प्रकाशन प्रारम्भ होता है, जिसका यशस्वी प्रकाशन आज भी प्रवाहमान है।

     लगभग सात लाख की संख्या में प्रकाशित होने वाली यह पत्रिका सम्भवतः सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली आध्यात्मिक पत्रिका है। अखण्ड ज्योति धर्म एवं अध्यात्म के वैज्ञानिक तत्वदर्शन की व्याख्या को लेकर समर्पित आध्यात्मिक पत्रिका है, जिसमें अध्यात्म के वैज्ञानिक एवं व्यवहारिक सुत्रों को पढ़कर जीवन के सर्वांगीण उत्कर्ष का मार्गदर्शन पाया जा सकता है। हिंदी व अंग्रेजी के अतिरिक्त अखण्ड ज्योति सात क्षेत्रीय भाषाओं, यथा – मराठी, गुजराती, उड़िया, बंगला, तेलगू, कन्नड़, मलयालम में भी प्रकाशित होती है।


     आजादी के बाद की आध्यात्मिक पत्रकारिता -

     अरविन्द आश्रम पाण्डिचेरी से अदिति नामक पत्रिका प्रकाशित हुई। 1970 में श्री सुरेंद्रनाथ जौहर फकीर श्री अरविंद कर्मधारा पत्रिका का शुभारम्भ करते हैं, जो आज अरविंद आश्रम, दिल्ली का मुखपत्र है।

     1976 में श्रीअरविंद आश्रम, पाँडिचेरी से त्रैमासिक पत्रिका स्वर्ण हंस का प्रकाशन शुरु होता है, जिसकी संस्थापिका, संपादिका एवं प्रकाशिका श्याम कुमारी हैं। पत्रिका श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ के आध्यात्मिक शिक्षाओं एवं दर्शन पर आधारित सामग्री को प्रकाशित करती है।

     मातृ वाणी, माता अमृतानन्दमयी मठ की आध्यात्मिक पत्रिका है, जिसमें श्री अमृतानन्दमयी देवी (अम्मा) की आध्यात्मिक शिक्षाएं रहती हैं। 1984 में प्रारम्भ यह पत्रिका 17 विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित की जाती है, जिसमें 9 भारतीय मूल की व 8 विदेशी भाषाएं हैं।

     बीसवीं सदी के अंतिम दशक में वर्ष 1996 में अंग्रेजी मासिक पत्रिका लाइफ पॉजिटिव का प्रकाशन होता है। आध्यात्मिक विकास, व्यकित्व परिष्कार, सकारात्मक चिंतन, समग्र स्वास्थ्य और वैकल्पिक चिकित्सा पद्वतियाँ जैसे विषय इसमें शामिल रहते हैं। दैनन्दिन जीवन में पाठकों का हितलाभ हो, ये ध्यान में रखा जाता है। 2004 में इसके हिंदी संस्करण का प्रकाशन प्रारम्भ होता है।

इसी तरह विभिन्न आध्यात्मिक संस्थाओं द्वारा आध्यात्मिक पत्रिकाएं प्रकाशित की जा रही हैं, जिनमें ओशो, श्रीश्रीरविशंकर, सद्गुरु जग्गी वसु, चिन्मय मिशन मुम्बई, ब्रह्मकुमारी एवं अन्यों के उल्लेखनीय प्रयासों को देखा जा सकता है।


मुख्यधारा के मीडिया में आध्यात्मक पत्रकारिता एवं संचार

समाचार पत्रों में  90 के दशक में दैनिक आध्यात्मिक स्तम्भ एवं साप्ताहिक परिशिष्ट आना प्रारम्भ होते हैं। समाचार एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में आध्यात्मिक लेखों को स्थान मिलता है। टीवी चैनल्ज में रामायण – महाभारत जैसे धार्मिक – आध्यात्मिक धारावाहिक प्रारम्भ होते हैं और यह एक चलन बनता है। इसके साथ दर्जनों भक्ति चैनल्ज का श्रीगणेश होता है।

वेब मीडिया में आध्यात्मिक सामग्री अपना स्थान पाती है और आज ब्लॉग, यू-ट्यूब चैनल्ज एवं सोशल मीडिया के विविध प्लेटफॉर्म में आध्यात्मिक सामग्री के विस्फोट को देखा जा सकता है।

संक्षेप में कहें, तो मुख्यधारा की पत्रकारिता में आध्यात्मिक पत्रकारिता का आगाज हो चुका है, जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

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