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आध्यात्मिक सामग्री की बढ़ती माँग और टीवी चैनल्ज -
आज की भाग दौड़ भरी
जीवन शैलीमें थके, हारे और दिग्भ्रमित इंसान के बीच कुछ पल शांति-सुकून देने वाली
सामग्री की माँग बढ़ रही है। शिमला पुस्तक मेला में पधारे नेशनल बुक ट्रस्ट के
तत्कालीन निर्देशक, श्री एम.ए. सिकन्दर के शब्दों में, अध्यात्म विषयक पुस्तकें
भारतीय प्रकाशन संस्थानों की यूएसपी अर्थात विशिष्ट पहचान बन गई हैं। विदेशों में
इन पुस्तकों की भारी माँग है। यहाँ तक की चीन में भी ये खासी लोकप्रिय हो चुकी
हैं। पिछले दिनों अबु-धावि पुस्तक मेला में अध्यात्म विषयक पुस्तकों पर आगन्तुकों
ने गहरी रुचि दिखाई थी। चीन के लोग भी भारतीय जीवन शैली और अध्यात्म से जुड़ाव
महसूस कर रहे हैं। वे उत्सुक हैं यह जानने के लिए कि भारतीय लोग इतने खुश कैसे हैं।[i]
वास्तव में भारत में
भी अध्यात्म विषय सामग्री के प्रति रुचि बढ़ती जा रही है। पाठकों एवं दर्शकों की
इस माँग को पूरा करने के उद्देश्य से प्रिंट मीडिया की तरह इलैक्ट्रॉनिक मीडिया
में भी प्रयोगों का दौर जारी है। इसी के तहत पिछले दो दशकों में कई आध्यात्मिक चैनलों
का आगाज हुआ है।
भारत में
भक्ति धार्मिक / चैनलों की
सूचि (03-06-2012) –
2012
तकभारत में
सक्रिय आध्यात्मिक चैनल कुछ इस तरह से थे[ii] -
1.संस्कार, 2. आस्था, 3. आस्था
भजन, 4. सतसंग, 5. वैदिक, 6. श्रद्धा, 7. दिव्या, 8. कात्यायनी, 9. अरिहंत, 10.
पारस, 11. जिनवाणी, 12. आशीर्वादम, 13. एंजेल टीवी, 14. साधना, 15. ईश्वर टीवी,
16. श्री वेंकटेश्वर भक्ति चैनल, 17. अध्यात्म, 18. भक्ति टीवी, 19. जी जागरण, 20.
सनातन टीवी, 21. श्री शंकर, 22. गोड एशिया, 23. शेलोम टीवी, 24. दर्शन 24, 25.
लोर्ड बुद्धा टीवी, 26. दिशा टीवी, 27. कलश टीवी, 28. जी सलाम, 29. चढ़दी कला
टाइम्स टीवी, 30. प्रार्थना टीवी, 31. पावर विजन, 32. आत्मीया यात्रा, 33. गुडनेस
टीवी, 34. वरदान टीवी, 35. बलेसिंग टीवी, 36. बलेसिंग किड्ज, 37. अराधना टीवी, 38.
रक्षण टीवी, 39. कृष्ण टीवी, 40. शुभ वार्ता टीवी, 41. केल्वरी टीवी, 42.
प्रार्थना भवन टीवी, 43. सोह्म टीवी।
इनमें से कुछ लोकप्रिय आध्यात्मिक
चैनलों का वर्णन नीचे किया जा रहा है -
आस्था
टीवी –
आस्था टीवी एक हिंदी भाषी सामाजिक-आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक नेटवर्क है। यह
देश का एक मुख्य आध्यात्मिक चैनल है। 2000 में स्थापित इस चैनल की पहुँच 3 करोड़
से अधिक घरों तक, 20 करोड़ दर्शकों से अधिक तक है। इसके कार्यक्रम हिंदी, गुजराती
और अंग्रेजी में होते हैं और विश्वभर में व्याप्त भारतीय लोगों की गहन आध्यात्मिक
जरुरतों को पूरा करने में रहता है।[iii]
चैनल स्वयं को भारत के नम्बर एक सामाजिक-आध्यात्मिक-सांस्कृतिक चैनल होने का दावा
करता है।
संस्कार टीवी –
संस्कार टीवी चैनल भारतीय दर्शन, धर्म और
आध्यात्मिक संस्कृति के लिए समर्पित है, जो सनातन धर्म में निहित विराट और शाश्वत
ज्ञान को विश्व भर के लोगों तक पहुँचा रहा है।[iv]
जी
जागरण –
जनवरी 2004 में शुरु जी जागरण एक आध्यात्मिक और धार्मिक चैनल है, जिसका
संचालन जी टीवी समूह कहता है। इस भारतीय धार्मिक चैनल का उद्देश्य आध्यात्मिक और
पौराणिक सीरियल्ज, फिल्मों एवं अन्य हीलिंग कार्यक्रमों के माध्यम से दर्शकों का मनोरंजन करना है। इसके कार्यक्रम हिंदी
भाषा में प्रसारित किए जाते हैं।
साधना
टीवी –
साधना टीवी एक हिंदी भाषी धार्मिक, आध्यात्मिक और भक्ति समाचार चैनल है।
इसकी स्थापना 2003 में साधना समूह द्वारा हुई थी। चैनल के मुख्य प्रबन्धक का कहना
है कि, हमारा दायित्व बनता है कि हम जनता को, विशेषकर नयी पीढ़ी को अपनी महान
मातृभूमि के पुरातन सनातन मूल्यों और संस्कारों से परिचित कराएं।[v]
श्रद्धा-
19 मार्च
2007 को शुरु किए गया यह चैनल अल्पकाल में ही एक प्रमुख भक्ति चैल बन गया है। इसे
हर दिन माँ वैष्णों देवी के पवित्र दरवार से नित्य प्रसारण का गौरव प्राप्त है।
इसके कार्यक्रमों की रचना बृद्धों सहित देश के हर वर्ग के दर्शकों की भक्ति एवं
आध्यात्मिक पिपासा को पूरा करने के उद्देश्य से की गई है।[vi]
कात्यायनी –
भारत का यह पहला टीवी चैनल है, जो
पूरी तरह से माँ भगवती के लिए समर्पित है।
दिव्या–
यह देश का पहला भक्ति संगीत चैनल है, जो रुह
को छूने वाले भक्ति संगीत कार्यक्रम पेश करता है।
दीक्षा –
दीक्षा एक हिंदी भाषी आध्यात्मिक चैनल
है। आध्यात्मिक गुरुओं के दिलो दिमाग को तनावमुक्त और तरोताजा करने वाले कार्यक्रम
इसकी विशेषता हैं। इसके साथ यहाँ ध्यान, योग, भक्ति संगीत और आध्यात्मिक कार्यक्रम
प्रसारित किए जाते हैं।
ब्रह्माकुमारीज
टीवी चैनल–
ब्रह्माकुमारी टीवी चैनल आध्यात्मिक और
मूल्य आधारित प्रेरक और प्रकाशक कार्यक्रम तैयार करता है। इन्हें नियमित रुप से कई
हिंदी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के चैनलों के साथ विदेशों में भी प्रसारित किया
जाता है।
पारस टीवी–
यह जैन धर्म पर आधारित टीवी चैनल है, जिसे
विश्वभर में देवदर्शन, प्रवचन, आरती, जिन अभिषेक, आहारचर्या, पंच-कल्याणक, जैन
ज्योति जैसे कार्यक्रमों के साथ प्रसारित किया जाता है।[vii]
इसका शुभारम्भ 24 जून 2010 में किया गया था।
गॉड टीवी –
यह एक ईसाई चैनल है, जिसे एशिया में 2002 में शुरु किया गया। गॉड चैनल को
केवल के माध्यम से देश भर के शहरों में देखा जा सकता है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय
ईसाई चैनल है, जो जेरुसलेम से विश्वभर में द रिवोल्यूशन हेज बिगन जैसे
स्लोगनों के साथ कार्यक्रमों को प्रसारित करता है। गॉड टीवी के अनुसार विश्वभर के
200 देशों में यह 50 करोड़ लोगों तक पहुँचता है, इसमें लगभग 26 करोड़ परिवार आते
हैं, जिसमें 9 करोड़ भारतीयहैं।
ऑनलाईन आध्यात्मिक चैनल -
इंटरनेट माध्यम के आने से कई टीवी चैनल ऑनलाईन भी उपलब्ध हैं। यप्पटीवी के
माध्यम से उपलब्ध इन आध्यात्मिक चैनलों में टॉप दस चैनल कुछ इस तरह से हैं,
श्रीशंकर टीवी लाईव, शालोम टेलीविजन, आस्था टीवी, संस्कार टीवी, भक्ति टीवी,
एसवीबीसी लाईव, आस्था भजन टीवी, प्रार्थना टीवी, संस्कृति टीवी एवं अरिहंत टीवी।[viii]
इनमें श्रीशंकर टीवी लाईव, भारत का वहुभाषीय आध्यात्मिक चैनल है, जो
सनातन धर्म से जुड़े प्रवचन एवं भजनों को दिखाता है। शालोम टेलीविजन, भारतीय
कैथोलिक टीवी है, जो केरल से प्रसारित होता है। इसमें नित्य होली मास एवं द नसरानी
रोजरी रिसाइटेशन कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें ईसाई संगीत शो,
प्रतियोगिताएं, क्विज शो तथा पारिवारिक शो भी कार्यक्रम का हिस्सा रहते हैं।
ऑनलाइन केथोलिक दर्शकों के बीच यह खासा लोकप्रिय है। आस्था टीवी, लोकप्रिय
भारतीय आध्यात्मिक चैनल है, जिसमें आध्यात्मिक प्रवचन, धार्मिक कार्यक्रम,
भक्ति संगीत एवं ध्यान की तकनीकों को दिखाया जाता है।संस्कार टीवी, भी
भारतीय टीवी चैनल है, जिसमें भारतीय संस्कृति, धर्म, अध्यात्म एवं दर्शन के
कार्यक्रम दिखाए जाते हैं। भक्ति टीवी, तेलगू मेंपहला 24X7 सेटेलाईट
भक्ति चैनल है, जिसमें सनातन धर्म के कार्य़क्रमों को दिखाया जाता है और पूरे
विश्वभर में इसे देखा जाता है। एसवीबीसी लाईव भी तेलगू भक्ति चैनल है,
जिसमें तिरुपति की पूजा का सीधा प्रसारण किया जाता है, जो दर्शकों के बीच खासा
लोकप्रिय रहता है। आस्था भजन टीवी, हिंदी भाषी चैनल है, जो 24 घंटे सनातन
धर्म से जुड़े अपने कार्यक्रम प्रसारित करता है। प्रार्थना टीवी, उडिया भाषा
का आध्यात्मिक चैनल है, जिसमें धार्मिक कार्यक्रमों के साथ प्रवचन एवं भक्ति संगीत
भी दिखाए जाते हैं। संस्कृति टीवी, एक तेलगू आध्यात्मिक चैनल है, जिसे अब टीवी1
के नाम से प्रसारित किया जाता है, इसके धार्मिक एवं आध्यात्मिक कार्य़क्रमों को
विश्वभर में देखा जाता है। अरिहंत टीवी, एक लोकप्रिय हिंदी भाषी जैन टीवी
चैनल है, जिसे जैन भक्तों द्वारा विश्वभर में देखा जाता है।[ix] इन टीवी
चैनलों को इंटरनेट का उपयोग करते हुए पीसी, मोबाईल, टेबलेट्स आदि कहीं भी देखा जा
सकता है।
इसी तरह सिक्ख चैनल, अकाल चैनल, संगत टीवी जैसे भक्ति चैनल हैं, जो भारत ही
नहीं पूरे विश्व में सिक्खधर्माबलम्वियों के लिए दर्शनीय रहते हैं। लोर्ड बुद्धा
टीवी बुद्ध धर्म की शिक्षाओं पर आधारित कार्यक्रम प्रसारित करता है।
इनके अतिरिक्त देश में दर्जनों स्थानीय स्तर पर विभिन्न भाषाओं के
आध्यात्मिक चैनल हैं। हर वर्ष ऐसे नए चैनल शुरु हो रहे हैं। चारों ओर भक्ति चैनलों
की बाढ़ सी देखी जा सकती है।
आध्यात्मिक चैनलों की
बढ़ती संख्या और इसके कारण –
पिछले कुछ बर्षों से
भारत में धार्मिक और आध्यात्मिक चैनलों की बाढ़ सी आयी है। इनके दर्शक रविवार की
सुबह तक सीमित नहीं है, दर्शक धर्म और अध्यात्म से सम्बन्धित चैनलों को पूरे
सप्ताह भर, दिन के चौबीसों घंटे देखना चाहते हैं।[x]इसके प्रमुख कारणों को निम्न रुप में समझा जा सकता है[xi]–
1.
हमारा देश
आस्थावानों का देश है। अध्यात्म प्रधान देश होने के कारण, अध्यात्मपरक जरुरतों का
ध्यान रखने वाला कोई भी चैनल यहाँ चल जाएगा। बैसे भी आज आध्यात्मिक सामग्री की
माँग है। हर इंसान के गहन अंतराल में एक आध्यात्मिक पिपासा होती है, चैनल जिसे
पूरा करने का प्रयास करते हैं। आस्था टीवी के मुख्य प्रबन्धक के मत में - चैनल को
शुरु करने का उद्देश्य नकारात्मकता को जड़ से दूर करना था। हम लोक कल्याण की भावना
के साथ इसे शुरु किए थे।
2.
उनके शब्दों में –
भारत के मूल्य-प्रधान समाज में, वहुविवाह, विवाहेतर सम्बन्ध और अन्य सामाजिक रुप
से अवांछनीय सम्बन्धों से सहज सहमति नहीं रखते, जो कि आज के अधिकाँश टीवी सीरियलों
के आधार बने हुए हैं। ऐसे चैनलों से दर्शकों को वितृष्णा हो रही है, वे बेहतर
सामग्री चाहते हैं।
3. आध्यात्मिक चैनलों के बढ़ने का एक अन्य कारण है – भारतीय घर सामान्यतः एक टीवी
सेट बाले घर होते हैं, जहाँ तीन पीढ़ियाँ टीवी देखने बैठती हैं। आज के निम्न
वृतियों एवं भावनाओं को भड़काने वाले कार्यक्रमों को देखते हुए, यह स्वाभाविक है
दर्शक ऐसे कार्यक्रमों की ओर रुख करते हैं जिनसे शरीर, मन और आत्मा को पोषण मिले।
और दर्शकों का यह वर्ग किसी एक सामाजिक-आर्थिक समूह या आयु वर्ग तक सीमित नहीं
है। आम धारण के विपरीत, इन चैनलों के दर्शक महज सीनियर सिटीजन भर नहीं हैं, जो
जीवन के उत्तरार्ध में इस ओर प्रवृत हुए हैं। टैम मीडिया शोध समूह ने पाया था कि
गोड और साधना चैनलों में 35 से ऊपर के आयु वर्ग के शत-प्रतिशत दर्शक थे। आस्था के
46 फीसदी, संस्कार के 41 फीसदी, जी जागरण के 60 फीसदी और क्यू टीवी के 53 फीसदी
दर्शक 35 वर्ष से नीचे के थे।औसतन रुप में, सभी आध्यात्मिक चैनलों के बीच यह पाया
गया कि 54 फीसदी दर्शक 35 वर्ष या इससे अधिक के थे।
युवा पीढ़ी में अध्यात्म के प्रति रुझान के कारण–
संस्कार टीवी के प्रबन्धक निर्देशक, दिनेश काबरा के अनुसार, समय बदल चुका है।
युवा अधिक तनावग्रस्त हैं, और वे अपने समाधान आध्यात्मिक सत्संगों में खोजते हैं।
आज हमारा दर्शक वर्ग 25 वर्ष की आयु का है, जो कि 35 प्लस से बहुत नीचे है, जो कि
तीन वर्ष पूर्व था, जब हमने चैनल शुरु किया था। आज लोग 25 वर्ष की आयु में ही
अध्यात्म के प्रति रुझान रखने लगे हैं और 30 वर्ष की आयु तक तो वे इसकी गहराई में
उतर चुके होते हैं।[xii]
मीडिया कमेंटेटर शैलजा बाजपेई, ऐसे चैनलों को मनोचिकित्सक चैनल पुकारती हैं,
और कहती हैं कि युवा आजकल बहुत तनावग्रस्त हैं और अधिकाँश टीवी चैनलों में माहोल
हिंसा और भ्राँति का है। तुलनात्मक रुप में, आप आध्यात्मिक चैनलों पर अधिक बेहतर,
शांत एवं प्रशांतक सामग्री पाते हैं। कई बार चर्चाएं इतनी रोचक होती हैं कि दर्शक
पूरा देखे बिना दम नहीं लेते।[xiii]
आध्यात्मिक चैनलों में एक समानान्तर विकास यह हुआ है कि अब 50 प्लस आयुवर्ग को
आकर्षित करने वाले आध्यात्मिक बाबाओं के प्रवचनों की जगह, आर्ट ऑफ लिंविंग, योग,
फेंग्शुई, वास्तु जैसे युवाओं के मनमाफिक कार्यक्रम चल पड़े हैं। युवा कॉर्पोरेट
लोगों को आकर्षित करने के लिए दीपक चोपड़ा, शिव खेड़ा, अनिल कुमार, विकास मल्कानी
जैसे मोटीवेशनल वक्ताओं को बुलाया जा रहा है, जिनकी सरल और अनौपचारिक अंग्रेजी
युवाओं को आकर्षित करती है।कुम्भ मेला, गणेश चतुर्थी और नवरात्रि जैसे त्यौहारों –
उत्सवों की लाइव टेलीकास्ट ने सावित कर दिया है कि धर्म भारतीयों के बीच एक बहुत
लोकप्रिय चीज रहेगा। लाइव टेलीकास्ट ने, वास्तव में, आध्यात्मिक टीवी को एक ताजा
ऊर्जा दी है। लाइव प्रसारण ने इनकी टीआरपी में अच्छा खासा इजाफा किया है।[xiv]
मुख्यधारा के टीवी चैनलों में आध्यात्मिक सामग्री -
मुख्यधारा के मनोरंजन चैनल भी धार्मिक-आध्यात्मिक सामग्री के महत्व को समझ
गए हैं और भक्ति चैनलों की लहर पर सवार हो चुके हैं तथा खुलकर ऐसे कार्य़क्रमों को
स्पेस दे रहे हैं। 2001 में जब जी टीवी पुनर्जागरण चाहता था तो पौराणिक धारावाहिक
जय संतोषी मां और महाभारत शुरु किया। सोनी टीवी ने प्रातःकालीन कार्यक्रमों में
दिल के द्वार खोल, अमृत वर्षा और ओम नमः शिवाय जैसे पौराणिक धारावाहिक शुरु किए।
स्टार प्लस ने जय माता की और यात्रा हर रविवार सुबह दिखाने शुरु किए। नवरात्रि के
दिनों में शक्ति उपासना से जुड़े स्थलों को कवर किया गया। इटीसी चैनल से अमृतसर के
स्वर्ण मंदिर की गुरुवाणी के लाइव टेलीकास्ट (भारत सहित इंग्लैंड और अमेरिका) ने
चैनल में जैसे नए प्राण फूँक दिए। डीडी सह्याद्रि ने गणेश चतुर्थी के दिनों में
गणपति को समर्पित हेलो साखी शो के माध्यम से दर्शकों की संख्या में खासा इजाफा
किया। ईटीवी मराठी के अष्टविनायक दर्शन और अभिषेक कार्यक्रम ने दर्शकों को जोड़े
रखा।देवों के देव महादेव, जय माँ दुर्गा, जय हनुमान, श्री कृष्ण, श्री गणेश और
महाभारत ऐसे ही कुछ लोकप्रिय धार्मिक धारावाहिक शुरु हुए।
आध्यात्मिक चैनलों के माध्यम से प्रसारित कंटेट की विशेषताओं, लाभ-हानि व
सीमाओं की चर्चा करना भी यहाँ प्रासांगिक होगा।
लाभ –
1. स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता –टीवी चैनलों पर
योग आसनों की शुरुआत हुई है और स्वास्थ्य चेतना पर इसका सकारात्मक असर पड़ा है। आज
पार्कों में सुबह लोगों को योग आसनों को करते देखा जा सकता है, जिनमें बड़ी संख्या
में महिलाएं होती हैं। स्वामी रामदेव को इसकी लहर पर सवार देखा जा सकता है। और वे
जंक फूड़, सॉफ्ट ड्रिंक्स तथा डिब्वा बंद खाने के खिलाफ लोगों को प्रेरित करते
रहते हैं।
2. भक्तिमयी सुबह औऱ शाम –प्रातः और सांयकालीन
आरती, पूजा आदि को दर्शक खूब देखते हैं, और निश्चित रुप से घर में भक्तिमयी
वातावरण बनता है, जो व्यक्ति में पवित्रता औऱ भक्ति भावना का संचार करता है।
3. प्रेरक सत्संग –धार्मिक चैनलों
पर चौबीसों घंटे भांति-भांति के प्रवचन एवं सत्संग प्रधान कार्यक्रमों को देखा जा
सकता है, जिनमें से कई गंभीर होते हैं, तो कुछ हल्के और कुछ हास्य, तो कुछ भय
मिश्रित श्रद्धा पैदा करने वाले। नाना प्रकार के गुरु, स्वामी और बाबाओं को विविध
प्रकार के दर्शकों को लुभाते देखा जा सकता है। और इस भीड़ में निश्चित रुप में
श्रेष्ठ संतों एवं आध्यात्मिक गुरुओं के प्रेरक सत्संग एवं प्रवचनों को सुनना
स्वयं में एक रोमाँचकारी अनुभव रहता है।
4. घर पर जीवंत प्रसारण –कुम्भ, तीर्थ
यात्राओं, आरतियों और पूजा का जीवंत प्रसारण दर्शकों को सीधी भागीदारी का अनुभव
देते हैं। घर बैठे ही नैष्ठिक श्रद्धालु भक्तों के लिए ये प्रसारण किसी रोमाँचक
अनुभव से कम नहीं होते।
5. सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के संरक्षक –पौराणिक और ऐतिहासिक धारावाहिक, अपने प्रगतिशील और व्यवहारिक आध्यात्मिक
संदेशों के साथ परम्परागत विरासत को नयी पीढ़ी तक हस्तांतरित करने में सहायक होते
हैं। निश्चित रुप से ये संस्कृति के संरक्षण का माध्यम बनते हैं। रामायण और
महाभारत जैसे धारावाहिक इस दिशा में मील के पत्थर रहे हैं।
6. दर्शकों की आध्यात्मिक जिज्ञासा एवं आवश्यकता की पूर्ति –अपनी तमाम सीमाओं के बावजूद ये चैनल काफी हद तक दर्शकों की आध्यात्मिक
आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। कईयों को अपनी सूक्ष्म समस्याओं के समाधान मिलते हैं
और आंतरिक विकास के लिए आवश्यक प्रेरणा पाते हैं। कईयों को मानसिक शांति मिलती है
और नई ऊर्जा के साथ कार्य करने का उत्साह मिलता है।इन आधार पर ये टीवी चैनल कई
दर्शकों के लिए मोक्ष का द्वार बनते हैं।
7.
मुक्ति का द्वार बनते आध्यात्मिक चैनल–ऐसे कई लोग हैं जो आधुनिक जीवन की आपाधापी के
बीच इसके शोरगुल से बाहर निकलना चाहते हैं, शांति की तलाश में अपने स्व से जुड़ना
चाहते हैं, उच्चस्तरीय सत्य को पाना चाहते हैं। ऐसे लोगों के लिए धार्मिक चैनल
मोक्ष का द्वारा साबित होते हैं। कुछ दर्शक अपने मनपसंदीदा आध्यात्मिक गुरु के
सतसंग में भाग लेते हैं और कुछ आसन-प्राणायाम के सत्रों से स्वास्थ्य लाभ पाते
हैं। कुछ आत्म अन्वेषण के टिप्स पाते हैं, तो कुछ इनके माध्यम से मन की शांति को
पाते हैं। कुछ मंत्रों को तो अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों का श्रवण करते हैं, जबकि कुछ
लाइव सतसंगों के संग आंतरिक सुकून पाते हैं।[xv]
इन चैनलों में एक बड़ा वर्ग विभिन्न धार्मिक गुरुओं के माध्यम से जीवन के तनाव के
बीच शांति-सुकून व जीवन के संघर्ष का सम्बल पाता है। इनके माध्यम से वे अपने
दुःखों का उपचार पाते हैं।[xvi]
आध्यात्मिक
चैनलों का फलता फूलता व्यवसाय–
दर्शकों के बीच खासी लोकप्रियता के साथ आध्यात्मिक चैनलों का बाजार भी
खासा बढ़ चुका है। टैम मीडिया शोध डाटा के अनुसार 2009 से इनका विकास 25 प्रतिशत
से अधिक हुआ। साधना समूह के निर्देशक गौरव गुप्ता के अनुसार, सभी भाषाओं में इस
समय चालीस से अधिक चैनल हैं, जिनमें सात-आठ तो पिछले छ माह में आए हैं। कारण
आध्यात्मिक गुरुओं एवं स्थानीय प्रोडक्शन हाऊस से ऐसे क्रार्यक्रमों की भारी माँग
है।[xvii]जी
जागरण के बिजनेस हेड, अनिल आनन्द के अनुसार, हमारा आठवां साल चल रहा है और कह सकते
हैं कि यह एक लाभकारी व्यवसाय है।[xviii]
आस्था टीवी के मार्केटिंग एवं प्रोग्राम डायरेक्टर अरविंद जोशी के अनुसार, इनसे
हमारे व्यवसाय में खासी बढ़ोतरी हुई है, पिछले छः माह में स्लोट की माँग तथा
ट्रैफिक साठ प्रतिशत तक बढ़ा है।[xix]
इसके बीच चैनल वितरक भी प्रसन्न हैं। डिश टीवी के सीओओ सलिल कपूर के
शब्दों में, भक्ति चैनलों की भारी माँग है, अतः हमने अपने बेस पैक में इस श्रेणी
को भी शामिल कर लिया है।[xx]
आश्चर्य नहीं कि कई आध्यात्मिक गुरुओं ने अपने चैनल शुरु कर दिए हैं, जैसे माता
अमृतानन्दमयी देवी ने अम्मा नेटवर्क शुरु कर दिया है। भगवान मिशन ट्रस्ट ने
अध्यात्म टीवी पिछले साल शुरु किया है।
लेकिन उपरोक्त वर्णित तथ्य हीधार्मिक चैनलों से जुड़े सत्य नहीं हैं। इसके
दूसरे स्याह पहलू भी हैं, जिनपर ध्यान देने की आवश्यकता है।
चिंता और समीक्षा के क्षेत्र -
1. एक धर्मविशेष और सांस्कृतिक विरासत पर केंद्रित –
धार्मिक चैनलों पर कई बार इल्जाम लगता है कि वे एक धर्म विशेष के संदेशवाहक
के रुप में काम करते हैं, जो धार्मिक कट्टरता से भरे वातावरण में एक चिंता का विषय
हो जाता है। कुछ दर्शकों की शिकायत है कि ये अधिकाँशतः बहुसंख्यक धर्म पर आधारित
हैं,जबकि आनुपातिक रुप से सभी धर्मों के कार्यक्रमों को पेश किया जा सकता है।
2. छद्म गुरुओं की भीड़ –
रामचरित मानस और भावत कथा को धार्मिक चैनलों के माध्यम
से नवप्राण मिले हैं। कई कथावाचक राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हो चुके हैं और
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनके श्रोता हैं। किंतु कथावाचकों की बाढ़ चिंता का विषय
है, जिनसे कईयों की तड़क-फड़क, तो दूसरों की नाट्यकीयता से
भरा उथलापन गंभीर दर्शकों के गले नहीं उतरता। कई चमत्कारी बाबा यहाँ पर नादान
भक्तों को ठगते देखे जा सकते हैं। इस तरह से छद्म गुरुओं की भीड़ एक चिंता का विषय
है।
हालाँकि ऐसे छद्म गुरुओं का यदा-कदा
पर्दाफाश होता रहता है, भांडा फूटता रहता है, लेकिन इससे पूर्व ये भोले भाले
दर्शकों की श्रद्धा का भरपूर दोहन कर चुके होते हैं और अंततः उन्हें ठगा छोड़ते
हैं।
3. जीवन में अंधविश्वस और शॉर्टकट का प्रसार –
कई चैनलों
को जीवन में स्वास्थ्य और समृद्धि के रामवाण नुस्खे बांटते देखा जा सकता है।
दरिद्रता हटाने के लिए महाधन लक्ष्मी यंत्र, सिद्ध कुबेर यंत्र हैं तो जीवन की हर
समस्या के समाधान के लिए लाल किताब है। शनिबाबा हर दुःख से दूर करने के लिए हैं।
रामायण-महाभारत धारावाहिकों के नायकों को यहाँ वास्तु, रुद्राक्ष, क्वच, मोतियों
आदि का विज्ञापन करते देखा जा सकता है।
यहाँ पर
आयुर्वेदिक नुस्खों, ज्योतिष, वास्तु, धार्मिक पर्यटन आदि पर विज्ञापन देखे जा
सकते हैं, लेकिन आध्यात्मिक पुस्तकों पर शायद ही विज्ञापन मिलता हो।[xxi] ऐसे
कार्यक्रमों को अधिकाँशतः अंधविश्वास फैलाकर, भोली जनता को भरमाते देखा जा सकता
है।
4. धनबल –
मजेदार बात यह
है कि इन चैनलों की आमदमी के मुख्य स्रोत ये धर्मगुरु होते हैं। चैनल इन पर तरह-तरह
के रेट तय करता है, जो लोकप्रियता, विषय, संभावित दर्शकों के प्रकार आदि पर निर्भर
करता है। चैनल की 80 फीसदी आमदनी ऐसे स्रोत से होती है। आस्था के मालिक किरीत मेहता
के अनुसार, विज्ञापन इसका महज 20 फीसदी हिस्सा होते हैं। एक माह तक 20 मिनट का
स्लॉट ढेड़ से अढाई लाख की आमदनी देता है। धार्मिक कार्यक्रमों के निदेशक केशवराय
इसे 3 लाख तक बताते हैं।इस तरह जिनके पास धन है, वेही आज के संत हैं।...यह एक
सार्वजनिक तथ्य है कि अधिकाँश गुरु या बाबा कोर्पोरेट आधार लिए होते हैं। और कई
मीडिया नए धर्मगुरु तैयार करने में अपनी भूमिका निभाते हैं।[xxii]
5. वैज्ञानिक सोच और प्रगतिशील रुझान का अभाव –
अधिकाँश बाबाओं
के प्रवचन, उपदेश बहुत ही पारंपरिक होते हैं, जिनमें प्रगतिशीलता एवं वैज्ञानिकता
का अभाव होता है। बुद्धिजीवी को इनकी अधिकाँश बातों को गले उतारना कठिन होता है।
कईयों को इनके माध्यम से छद्म सामाजिक-सांस्कृतिक विचारों का अवांछनीय प्रचार होता
दिखता है।
निष्कर्ष –
जहाँ तक
आध्यात्मिक पत्रकारिता की बात है, भक्ति चैनलों का वर्तमान स्वरुप शैशवावस्था में
कहा जा सकता है। समाज व मानवता के हित में इनकी संभावनाओं को पंख लगे, निम्न बातों
का ध्यान रखना जरुरी होगा –
1.
हर धर्म के
दर्शकों के लिए कार्यक्रम बनने चाहिए।
2.
हर धर्मों के
श्रेष्ठतम तत्व, निचोड़ को, सार्वभौम शिक्षाओं का प्रचार होना चाहिए।
3.
धर्मके
कर्मकाण्डीय एवं वाह्य पक्ष को अत्यधिक महत्व नहीं देना चाहिए। इसकी जगह इसके
वैज्ञानिक आधार, व्यवहारिक स्वरुप और आध्यात्मिक उपादेयता को उभारा जाना चाहिए।
4.
युवाओं को
सन्मार्ग पर प्रेरित करने वाले कार्यक्रमों का निर्माण किया जाना चाहिए।
5.
नकारात्मक और
विखंडक पहलुओं को अनावश्यक कवरेज नहीं देनी चाहिए। इसके स्थान पर किसी भी समुदाय
के सकारात्मक पक्ष और इसके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों को उभारा जाना चाहिए। सफल
कहानियों को विशेष महत्व देना चाहिए।
6.
विज्ञापन में
पठनीय, प्रेरक एवं श्रेष्ठ पुस्तकों को भी स्थान मिलना चाहिए।
7.
प्रामाणिक और
सच्चे आध्यात्मिक गुरुओं,संतों, बाबाओंव आध्यात्मिक व्यक्तियों को ही प्रोमोट किया
जाना चाहिए तथा चमत्कारी बाबाओं को प्रश्रय नहीं दिया जाना चाहिए।
कार्य निश्चित रुप
से आसान नहीं है। लेकिन मीडिया नेतृत्व यदि वैज्ञानिक सोच से युक्त है, समग्र सोच
एवं संवेदनशील ह्दय साथ में है तो इस दिशा में साहसिक कदम उठाए जा सकते हैं।
व्यैक्तिक स्तर पर भी रिपोर्टर और प्रोड्यूसर इस दिशा में अपना मौलिक योगदान दे
सकते हैं। इस दिशा में नैष्ठिक प्रयास आध्यात्मिक पत्रकारिता की अपार संभावनाओं को
साकार कर सकते हैं और सकारात्मक परिवर्तन के सशक्त माध्य्म के रुप में अपनी महत्वपूर्ण
भूमिका निभा सकते हैं।
संदर्भ -
[i]https://zeenews.india.com,
Indian
books on spirituality a big draw,(13 May,2012)
[ii]http://indiandth.in/Thread-India-s-devotional-religious-channels-list, retrieved on 20/11/2013
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[v] http://www.sadhna.com/aboutus_vis.html
[vi] http://shraddha.mhone.in/about_us.html
[viii]https://www.acontentbox.org/the-top-10-spiritual-channels-in-india/,retrieved on 29/11/2019
[ix]वही,
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[xi]Ibid
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[xvi]https://www.ndtv.com/video/news/news/spiritual-channels-provide-dose-of-bliss-to-urban-india-31997,retrieved
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[xvii]Gurtoo, HimaniChandna, Spiritual small
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[xviii]Ibid
[xix]Ibid
[xx]Ibid
[xxi]Religious
channels on Indian TV, by Bharata Gupta, Mar 4 2006, ,retrieved
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[xxii]http://www.tehelka.com/story_main3.asp?filename=hub060504Press_button.asp&id=3, retrieved
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